स्मरण कर रहा वह अनुभूति
जिसमें
ह्रदय और मन
दोनों
उसकी उपस्थिति के अनुभव से
स्पंदित हो
प्रसन्नता के नए नए
गीत गुनगुना रहे थे मौन में
वह क्षण जब
हर सीमा विलीन हो रही थी
कृपा के सघन आलिंगन में
एक शाश्वत स्वर्णिम भोर सी
उभर आई थी
मुझमें
वह क्षण जब
धरती पर होते हुए भी
धरती के वासी नहीं रहे जाते हम
वह क्षण
उसके होने का एक अपूर्व दृश्य देख कर आते हैं
या कहीं कुछ अत्यंत अपना सा देख कर
भीतर से ही अनावृत हो प्रकट हो जाते हैं
ऐसे क्षण
सहेजने के लिए
निरंतर खुदको सहेजना होता है
शब्दों के पास
बैठ कर
नए नए ढंग से
सीखता हूँ खुदको सहेजना
पर शब्द असमर्थता जताते हैं
कहते हैं
जो तुम्हारा है
वही हम तुम्हें दे आते हैं
तुम जिस भाव की महिमा अधिकाधिक गाते हो
बस उसी भाव का रूप हो जाते हो
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ सितम्बर २०१०
कविता में
यह कहना होता नहीं
कि
बाबा की उपस्थिति का
भाव सघनता से
ह्रदय को स्पर्श कर गया कल
न्यूयार्क के बाल्डविन स्थित मंदिर में
जब
भारत से आयी एक
बाबा की परम भक्त वीणा गुप्ताजी
द्वारा बाबा की आराधना के बाद
उनके विग्रह से
विभूति प्रकटन के दृश्य का साक्षी बना
पहली बार
विभूति चरणों के साथ साथ
बाबा को पहनाये हुए
वस्त्र पर से भी उभर आयी थी
जो दिखा
वो चमत्कारिक था
पर जो नहीं दिखा
उसमें और भी बड़ा चमत्कार है
एक
वो जो अनदेखा
अदृश्य
जुड़ कर हमसे
जोड़ता है हमें
अपार आन्तरिक समृद्धि से,
लील कर समस्त
चिंताएं
भर देता है
निर्मल, निश्छल प्रेम से
उस एक को
सौंपने समग्रता से स्वयं को
आरती करता हूँ
कविता दीप बन कर
ज्योत्स्ना फैलाती है
मुझे
परम आनंद के
नए नए सोपान दिखाती है
और
फिर
श्रीहरि के चरण छूकर
वही-कहीं लीन हो जाती है
साईं नाथ महाराज की जय !
ॐ श्री साईं राम गुरुदेव दत्ता!!
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ सितम्बर २०१०