न अच्छी पिक्चर न मसालेदार सुर्खियां बना पाये
विकास की बात हाशिये में सिमट कर रह जाए
चर्चा चाय की चुस्की पर लम्बी वह चल पाये
जो विरोध और असंतोष की आंच प्रकटाये
विरोध उसका भी जो सांस्कृतिक वैभव बताये
अपनी परम्पराओं पर तो हम हँसते चले आये
हमने रीति-रिवाजों की खिल्लियाँ उड़ाते चुटकुले बनाये
अविश्वास को बौद्धिक रंग लगा कर आधुनिक कहलाये
और भारत की आत्मा को पिछड़ी बता कर खिलखिलाए
संस्कृत और संस्कृति नहीं, तकनीकी गलियारे हमें लुभाये
राजकीय संरक्षण में अपने ही विरुद्ध लिखते चले आये
पर जब युग बदला, मान्यता के प्रतिमान खड़खड़ाए
इस बदलाव में अपना अप्रासंगिक होना सह न पाये
फिर ध्यान खींचने हमने नए नए उपकरण बनाये
तिल का ताड़ बना कर आस्मां पर कालिख पोत आये
सम्मान से भी शस्त्र बनाने की विधि जान कर इठलाये
असहिष्णुता ही दिखलाते चश्मे अपनी बिरादरी में बंटवाए
हाय, इस नासमझी के दलदल से हमें भारत माँ बचाये
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शनिवार, ३१ अक्टूबर २०१५