Saturday, October 31, 2015

सम्मान से भी शस्त्र,,,,



न अच्छी पिक्चर न मसालेदार सुर्खियां बना पाये 
विकास की बात हाशिये में सिमट कर रह जाए 

चर्चा चाय की चुस्की पर लम्बी वह चल पाये
जो विरोध और असंतोष की आंच प्रकटाये 

विरोध उसका भी जो सांस्कृतिक वैभव बताये 
अपनी परम्पराओं पर तो हम हँसते चले आये 

हमने रीति-रिवाजों की खिल्लियाँ उड़ाते चुटकुले बनाये 
अविश्वास को बौद्धिक रंग लगा कर आधुनिक कहलाये 

और भारत की आत्मा को पिछड़ी बता कर खिलखिलाए 
संस्कृत और संस्कृति नहीं, तकनीकी गलियारे हमें लुभाये 

राजकीय संरक्षण में अपने ही विरुद्ध लिखते चले आये 
पर जब युग बदला, मान्यता के प्रतिमान खड़खड़ाए 

इस बदलाव में अपना अप्रासंगिक होना सह न पाये 
फिर ध्यान खींचने हमने नए नए उपकरण बनाये 

तिल का ताड़ बना कर आस्मां पर कालिख पोत आये 
 सम्मान से भी शस्त्र बनाने की विधि जान कर इठलाये

असहिष्णुता ही दिखलाते चश्मे अपनी बिरादरी में बंटवाए
हाय, इस नासमझी के दलदल से हमें भारत माँ बचाये 

अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
शनिवार, ३१ अक्टूबर २०१५ 

Friday, October 30, 2015

समय बदलता है या हम?



समय बदलता है या हम?
इस प्रश्न में है सरगम 
कहाँ तक भागते रहें 
किस जगह जाएँ थम 

कहने सुनने से परे है एक संसार 
जहां पर पकता है साँसों का सार 
उसकी सजगता बढाने वाले 
हर शब्द शिल्पी को नमस्कार 

उस सृजनात्मकता का सत्कार 
जिससे प्रकट होता है विस्तार 
प्रार्थना सर्वत्र सुख -शांति की 
बढे समन्वय, उजागर हो प्यार 


अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
३० अक्टूबर २०१५
 

Thursday, October 29, 2015



राजनीती का इतिहास से क्या होता है नाता ?
कैसे राजनीतिज्ञ काल कर्म लेखन बदलवाता?

अब मनमाना लिखने पर होने लगी निगरानी 
तो असहिष्णुता का नाम लेकर ये खींचा तानी 

बौद्धिक भ्रष्टाचार की ये कहानी है पुरानी 
सबने अपनी भड़ास निकालने की ठानी

अब होना ही है दूध का दूध पानी का पानी 
जन जन लिखेगा नए भारत की कहानी 

अशोक व्यास 
२९ अक्टूबर २०१५

Wednesday, October 28, 2015

पूर्वाग्रह




अब फिल्म वालों ने भी टिकट कटाया
सुर्ख़ियों में आने का नया पथ अपनाया

असहमति व्यक्त करने का उत्सव मनाने
सम्मान लौटाने का हवाई बिगुल बजाया

बुला कर पत्रकार सम्मलेन
सुना रहे हैं अपना विवेचन

देश का वो हाल आम लोगों को  दिखा रहे है
जो सामान्य लोग सड़कों पर देख नहीं पा रहे हैं

अपनी  कुंठाओं का खुले आम व्यापार
राष्ट्रीय सम्मान का करके तिरस्कार

पूर्वाग्रह से ग्रस्त तथाकथित बुद्धिजीवी
चाहे जो हों, हमारे नायक नहीं है
अच्छा है लौटा रहे सम्मान, ये लोग
यूं भी सम्मान के लायक नहीं हैं

अशोक व्यास

ब्योमकेश बख्शी जैसी फिल्म बनाने वाले दिबाकर समेत 10 फिल्मकारों ने लौटाए अवॉर्ड

ब्योमकेश बख्शी जैसी फिल्म बनाने वाले दिबाकर समेत 10 फिल्मकारों ने लौटाए अवॉर्ड

नई दिल्ली. एम.एम. कलबुर्गी और गोविंद पानसरे जैसे लेखकों की हत्या के विरोध और एफटीआईआई में आंदोलन चला रहे स्टूडेंट्स के समर्थन में 10 फिल्मकारों ने अपने नेशनल अवॉर्ड लौटाने का एलान किया है। इनमें ब्योमकेश बख्शी जैसी फिल्म बनाने वाले दिबाकर बनर्जी और आनंद पटवर्द्धन जैसे फिल्ममेकर शामिल हैं। बता दें कि लेखकों की हत्या और दादरी में पिछले महीने हुए बीफ कांड के विरोध में करीब 40 साहित्यकार साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटा चुके हैं। 
 
किन फिल्ममेकर्स ने लौटाए अवॉर्ड 
बुधवार को दिबाकर बनर्जी, लिपिका सिंह, निष्ठा जैन, आनंद पटवर्द्धन, हरि नायर, कीर्ति नखवा, हर्ष कुलकर्णी समेत कुल दस फिल्ममेकर्स ने अवॉर्ड लौटाए।  
 
दिबाकर ने कहा-आप तय करें, जो हो रहा है वह सही है?
'खोसला का घोंखसा', 'लव सेक्स और धोखा', 'बॉम्बे टॉकीज' जैसी फिल्में बनाने वाले दिबाकर बनर्जी ने अवॉर्ड लौटाने को लेकर कहा, 'एफटीआईआई से जुड़ी खबरें पढ़कर आप खुद तय करें वहां जो हो रहा है वह सही है या गलत। जो एफटीआईआई में हो रहा है, वही देश के बाकी इंस्टीट्यूट्स में भी हो रहा है। इसी वजह से हम अवॉर्ड लौटा रहे हैं।' वहीं, आनंद पटवर्द्धन ने कहा, 'देश में आज जो कुछ हो रहा है वह काफी अजीब और डरा देने वाला है, उम्मीद है कि हमारे इस विरोध को और भी फिल्मकार समर्थन देंगे।'
 

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...