अब विदा कहते हुए
एक और बरस को
मुड़ कर देखते देखते
आगे भी देख रहा हूँ
फैलाये हैं अपने दोनों हाथ
धरा के सामानांतर
छू रहा अतीत और भविष्य
वर्तमान की गोद चढ़ कर
देख रहा अतीत को
आभार के साथ
आभार के साथ
जो दिखला रहा है
स्वर्णिम चरण गति की
उजाला मेरा नहीं
पर प्रकट होता है मुझसे भी जो
उसकी स्वच्छ उजली सूरत
आने वाले बरस के
हर एक दिन
हर एक पल से
झांक कर
सौम्यता से कर रही है
मेरा स्वागत जैसे
शुभ मंगल भावनायें
हो रही प्रसारित मेरे रोम रोम से
और
कण कण पर
लिख रहा
निर्मल, निश्छल प्यार
खिलखिला कर करते हुए
नए बरस का सत्कार
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३१ दिसंबर २०१५