Thursday, December 31, 2015

नए बरस का सत्कार


अब विदा कहते हुए 
एक और बरस को 
मुड़ कर देखते देखते 
आगे भी देख रहा हूँ 
फैलाये हैं अपने दोनों हाथ 
धरा के सामानांतर 
छू रहा अतीत और भविष्य 
वर्तमान की गोद चढ़ कर 

देख रहा अतीत को
आभार के साथ
जो दिखला रहा है 
स्वर्णिम चरण गति की 

उजाला मेरा नहीं 
पर प्रकट होता है मुझसे भी जो 
उसकी स्वच्छ उजली सूरत 
आने वाले बरस के 
 हर एक दिन 
हर एक पल से 
झांक कर 
सौम्यता से कर रही है 
मेरा स्वागत जैसे 

शुभ मंगल भावनायें 
हो रही प्रसारित मेरे रोम रोम से 
और 
कण कण पर 
लिख रहा 
निर्मल, निश्छल प्यार 
 खिलखिला कर करते हुए 
नए बरस का सत्कार 

अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
३१ दिसंबर २०१५

Friday, December 25, 2015

समय का पहिया

 

यह क्या है
जाग्रत रहे जिससे
तुम्हारा एक अंश
चेतना में
तुम्हारे चिरनिद्रा में लीन
हो जाने पर भी ?
ना  जाने कैसे
इस अबूझ से
पा लेता है
 आश्वस्ति सी  जीवन 
 २ 
आंसूओं की धारा से
पलट नहीं पाता 
समय का पहिया

पर किसी तरह पलट आती है 
रस्मयता तुम्हारी उपस्थिति की 

अब छोड़ दिए हैं
धूप को थैले में भर कर
घर लाने के प्रयास 
पर बाँध लिया है
किसी अनाम स्थल पर
तुम्हारी याद को मजबूती से 
क्योंकि तुम्हारे होने से ही तो 
अपना होता रहा है
 संसार सारा 

अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
२५  दिसंबर २०१५

Wednesday, December 2, 2015




देह वो छोड़ कर गया बाबा 
वक्त जैसे ठहर गया बाबा 

सबको सूना सा कर गया बाबा 
एक सन्नाटा भर गया बाबा 



इस खबर पर यकीन कैसे करें 
जिससे सब कुछ बिखर गया बाबा 

अब सुने कौन, कहूँ किससे मैं
अकेलेपन से डर गया बाबा 

कहना-सुन्ना था बहुत कुछ उससे 
किससे पूछूँ किधर गया बाबा 

अशोक व्यास 
न्यूयार्क, मई २०१५ 

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...