१
यह जो हो रहा है
इस क्षण
इन शब्दों का उगना
मेरा नियंत्रण नहीं है इस पर
मैं तो साक्षी भर हूँ
कर रहा हूँ अगवानी
नहीं कर सकता मनमानी
पूरे आदर से
देखता हूँ इन शब्दों में
संभावित अनंत
अपने हिस्से की परत
मैं नहीं चुनता
बस वह जो चुना गया है
मेरे लिए
कृतज्ञता से ओत-प्रोत
श्रद्धा से प्रस्तुत हूँ
उसे अपना लेने
२
अपनी निर्माण प्रक्रिया में
मैं इस तरह
अज्ञात का हाथ बंटाता हूँ
तत्परता से
शब्द संकेत पर चलता चला जाता हूँ
अनादि काल से चल रहे
शब्द सम्बन्ध को निभाता हूँ
अपने उद्गम का पता लगाते लगाते
किसी चुपचाप क्षण
उस अनुभूति में उत्तर जाता हूँ
अपना परम विस्तार देख पाता हूँ
शब्द कहलाते हैं
तो कह जाता हूँ
मैं ही ज्ञेय हूँ
मैं ही ज्ञाता हूँ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३० सितम्बर २०१४