जो कुछ साथ लाया था
सब छोड़ दिया है
तट पर
नदी में उतरने से पहले
यह याद भी नहीं की मुझे तैरना आता है या नहीं
कुछ दूर उतरने के बाद
ये पता चल जाता है की
मुझे डूबना भी नहीं आता
२
सुरक्षित रहने की चाह
मेरे भीतर रख कर
दिन-प्रतिदिन
मेरे आस पास
असुरक्षा के संकेत बढाने वाले
तुम मुझे जो कुछ सिखाना चाहते हो
उसके लिए
क्या जरूरी था
इतनी गहराई
इतनी ऊँचाई
इतने कांटो पर से मुझे चलाना
देखो, शिकायत न समझना मेरी इसे
पर
यह सब जो
उत्पन्न कर रहे हो मेरे चारो और
ये मनोवृत्तियां, जो तुम्हे देखने के मेरे ढंग पर अंकुश लगाती हैं
ये उथलापन, ये देह का उत्सव मनाने
और मनमाने ढंग से जीवन को सजाने
के नित्य नए अप्राकृतिक तरीके
मेरी धडकनों ने बरसों से
जो पाठ पढ़े हैं
उनको लेकर
अपनी अनुभूतियों तक पहुंचाने के लिए
क्या अब
गुफा में जाकर बैठ जाने के अलावा
कोई चारा नहीं है
हे कृष्ण
क्या एक साथ
कई कई संसार बना कर
तुम ये चाहते हो
की हम अपने संसार में रहते हुए
दुसरे संसार से पूरी तरह विलग रहें
क्या इसी को तुम 'अनासक्त' होना कहते हो
थक कर
बहती नदी के किनारे
प्रणाम कर रहा हूँ जब सूरज को
बात तुम से ही कर रहा हूँ केशव
मेरी छोडो
अब तुम्हारे लिए भी
अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है क्या
हमें उबारना
या फिर
तुम्हें जानने के मेरा प्रयास को
बड़ी लम्बी यात्रा तय करनी है
अब तक
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२५ जून २०११