Thursday, September 25, 2014

लिख लिख कर मिटाया



लिख लिख कर मिटाया 
भाव को बिसराया 
थपथपाया था जिसने 
वो हाथ न आया 


मैं इस तरह साँसों के संगीत से लुभाया जाता हूँ 
नए रास्तों के बुलावे  पर यूं ही  मुस्कुराता हूँ 
कभी ठहरे ठहरे ही पूरी यात्रा कर आता हूँ 
और कभी चलते चलते भी ठहरा रह जाता हूँ 


अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
२५ सितम्बर २०१४ 

3 comments:

कालीपद "प्रसाद" said...

मैं इस तरह साँसों के संगीत से लुभाया जाता हूँ
नए रास्तों के बुलावे पर यूं ही मुस्कुराता हूँ
कभी ठहरे ठहरे ही पूरी यात्रा कर आता हूँ
और कभी चलते चलते भी ठहरा रह जाता हूँ

शायद यही जिंदगी जिसे जीना है ...सुन्दर अभिव्यक्ति !
मैं इस तरह साँसों के संगीत से लुभाया जाता हूँ
नए रास्तों के बुलावे पर यूं ही मुस्कुराता हूँ
कभी ठहरे ठहरे ही पूरी यात्रा कर आता हूँ
और कभी चलते चलते भी ठहरा रह जाता हूँ

Unknown said...

Waah !! Bahut hi khubsurat prastuti !!

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही बढ़िया सर !

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