Monday, April 7, 2014

पापा गरिमा और विश्वास

 
पापा शब्द मधुर, पावन है 
अपनेपन का नित सावन है 
मेरे पापा बड़े निराले 
उनको बारम्बार नमन है 
 
घर वल्लभकुल भाव सजा है 
जय श्री कृष्ण का अभिवादन है 
श्रद्धा वाले अर्जुनराज  जी 
परम सत्य पर उनका मन है 

पापा गरिमा और विश्वास 
सज-धज उनकी खासमखास 
उत्सुकता उनकी आँखों में 
सतत ज्ञान की उनको प्यास 

कुशल, प्रेममय, निश्छल हैं 
सहज, शांत पर चंचल हैं 
अडिग रहें अपनी कथनी पर 
पापा का मन निर्मल है 

यादों का झरना बह आता 
बचपन की बातें कह जाता
प्रेम प्रकट है उनका मद्धम
छुपा रहे, फिर भी दिख जाता

प्रेम पापा से बड़ा सघन है 
उनकी कृपा मेरा जीवन है 
मौज करो, आशीष है उनकी 
उससे सजा हुआ जीवन है 


कितना मेरा रखा ध्यान 
हर मुश्किल कर दी आसान 
कर्म करें हम अच्छे-सच्चे 
फैले  पापाजी की शान 
 
बचपन में ये बात बताई 
सबमें देखो कुछ अच्छाई 
उन्नत दृष्टि से जीवन है 
कर्मों से ये बात सिखाई 

चाहे दूजे ना हों सहमत 
अपने मन से है अपना पथ
दृढ़ता और आस्था वाले 
पापा में विशिष्ट है जाग्रत 


बाऊ साब से ली उदारता 
काकीजी से गहराई 
सज-धज कर रहने वाली 
दृष्टि भीतर से ही पाई 
 
आज पापा के अस्सीवें जन्मदिवस पर 
सम्बन्धों में स्नेह का सुन्दर स्वर 
उनकी उपस्थिति में लीला रस 
घोल रहे हैं अब नटवर 
 
प्रसन्नता से दावत उड़ायें 
उनको प्रणाम करने का अवसर पाएं 
और श्रेष्ठ की ओर दृष्टि रख 
अपने जीवन को उत्कृष्ट बनाएँ 

इन शब्दों में भाव प्रसून का हार 
करें पापाजी स्वीकार 
मेरे प्रणाम और आलिंगन में 
नित्य शुद्ध रहने वाला प्यार 


हैप्पी बर्थडे का मंगल गान 
हैप्पीनेस की और दिलाता है ध्यान 
आप तो यंग हैं ही हमेशा 
आज मम्मी भी हो गयी जवान 

कविता को देते हुए विराम 
फिर एक बार आपको प्रणाम 
जुड़ने और जोड़ने वाली श्रद्धा 
हममें बनी रहे अविराम 


अशोक व्यास "बब्लू "
अप्रैल ७ २०१४


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