ना भूलूँ, निराधार का आधार
हर सांस का श्रद्धायुक्त सत्कार
ईश्वर और गुरुदेव सहित माता-पिता
बुजुर्गों, बंधू-बांधवों का आभार
पचास बरसों में ये मिला सार
प्यार बिना सब कुछ निस्सार
शाश्वत संपर्क की सजगता बिना
सूख सकती है ये पावन रसधार
जीवन यानि गति और विस्तार
जीते वो हैं, जो होते हैं उदार
और मैं के मूल में जाए बिना
हो नहीं सकते क्षुद्रता की पार
पचास बरस-
कृपा की स्वर्णिम झंकार
प्रार्थना यही,
हों सारे कर्म तुम्हारे संकल्प अनुसार
छुडा दो ओ केशव-
काम-क्रोध-मद-लोभ-दंभ से
कर दो,
जीवन के उत्तरार्ध में पावन परिष्कार
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वह कहने, जो कहा नहीं जाता
मुख से निकला, ओ अविनाशी विधाता
बनाओ हमारे जीवन को, आनंद और प्यार की
रसमय, चिन्मय, मंगल गाथा
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धन्यवाद और आभार के साथ
जन्मदिवस पर कहनी है यह बात
हमारे हर सांस है जिसकी सौगात
एक उसकी बात से, बन जाती हर बात
जिसके बनाए, होते हैं दिन और रात
हम सुनें-सुनाएँ, नित्य उसकी बात
है हम सबके जन्म-मरण का मूल जो
करता हूँ, उसका स्मरण, आप सबके साथ
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बस यही है केक, रसगुल्ला और मावे की कचौरी
रसमय ढंग से देखें, उसके हाथ बंधी हमारी डोरी
अपने जन्म दिवस पर,
अपने साथ-साथ
आपके लिए भी
उसकी कृपा का आव्हान
सुख-संतोष।
शांति- सम्रद्धि और
समन्वय हेतु
प्रार्थना युक्त मंगल गान
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आत्म-दरस करवाने वाले की जय जयकार
ओ चिर्मुक्त, तुम्हारी करूणा अपरम्पार
पारसमणि है स्पर्श गुरु सुमिरन का
जो तजे प्रमाद, करे वह आत्म-उद्धार
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पाकर परमसुख और शांति का 'गोल'
बजा रहा जन्मदिवस पर ढोल
मधुर मौन में मुखरित है बोल
आत्म-वैभव देता है तृप्ति अनमोल
अशोक व्यास
न्यूयार्क , अमेरिका
सोम्वार, 13 अगस्त 2012