लौट कर कहाँ चली जाती हैं
वो सब
अच्छी-अच्छी बातें
जिनमें प्यार छलकता है
जिनसे मिलती है
सबको स्वीकारने की दृष्टि,
जिनमें होती है
आश्वस्ति कि
हर बात से
कुछ अच्छा अर्थ निकाल सकते हैं हम
वो बातें
जो आशा का स्वादिष्ट मुरब्बा खिलाती हैं
हमारी चेतना को
और
हम वैसी ही उमंगों से
भर जाते हैं
जैसी महसूस की थीं
कभी बचपन की दीवाली में
वो बातें
शायद हैं तो हमारे आस-पास ही
पर वो मनुष्य
जिनकी साँसों से
सच का प्रवेश हो पाता है
इन बातों में
हैं नहीं शायद आस-पास
और अब
इस बात पर कौन दिलाये विश्वास
कि उन्होंने तो ये कहा था
एक दिन
'वो मनुष्य'
जिसकी साँसे इन सब बातों को
सच बनाती हैं
मिलेगा हमें
हमारे ही भीतर
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ सितम्बर २०१०
1 comment:
भगवान करे कि विश्व अच्छी बातों के मुरब्बे से भर जाये।
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