नदी का बहाव देखते हुए
पानी में आसमान के साथ
दिखाई देते हैं
बीती हुई कई घटनाओं के चित्र
बैठे बैठे
हँस पडा हूँ कभी
और
कभी उभरी है एक कसक
रिश्तों की कई नौकाएं
गुज़री हैं अभी फिर
आँखों के सामने से
सभी पर
आभार पुष्प अर्पित कर
तन्मयता से
आज
फिर
छटपटा कर
नदी से पूछ रहा हूँ
पता उस सूत्र का
जो जोड़ता है
मुझे सबसे
और
किसी एक क्षण
मुझे एकाकी भी
कर देता है अनायास
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१८ सितम्बर 2010
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