Saturday, September 18, 2010

रिश्तों की कई नौकाएं


नदी का बहाव देखते हुए
पानी में आसमान के साथ
दिखाई देते हैं
बीती हुई कई घटनाओं के चित्र 
बैठे बैठे 
हँस पडा हूँ कभी 
और 
कभी उभरी है एक कसक 
 
रिश्तों की कई नौकाएं 
गुज़री हैं अभी फिर 
आँखों के सामने से 
सभी पर 
आभार पुष्प अर्पित कर 
तन्मयता से
आज 
फिर
छटपटा कर
नदी से पूछ रहा हूँ
पता उस सूत्र का
जो जोड़ता है
मुझे सबसे 
और
किसी एक क्षण
मुझे एकाकी भी 
कर देता है अनायास


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१८ सितम्बर 2010

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