Monday, September 13, 2010

सहेजने के लिए


अब सजगता से
स्मरण कर रहा वह अनुभूति
जिसमें
ह्रदय और मन
दोनों
उसकी उपस्थिति के अनुभव से
स्पंदित हो
प्रसन्नता के नए नए 
गीत गुनगुना रहे थे मौन में

वह क्षण जब
हर सीमा विलीन हो रही थी
कृपा के सघन आलिंगन में
एक शाश्वत स्वर्णिम भोर सी
उभर आई थी 
मुझमें

वह क्षण जब 
धरती पर होते हुए भी
धरती के वासी नहीं रहे जाते हम
वह क्षण
उसके होने का एक अपूर्व दृश्य देख कर आते हैं
या कहीं कुछ अत्यंत अपना सा देख कर
भीतर से ही अनावृत हो प्रकट हो जाते हैं

ऐसे क्षण
सहेजने के लिए
निरंतर खुदको सहेजना होता है
शब्दों के पास
बैठ कर
नए नए ढंग से 
सीखता हूँ खुदको सहेजना

पर शब्द असमर्थता जताते हैं
कहते हैं
जो तुम्हारा है
वही हम तुम्हें दे आते हैं
तुम जिस भाव की महिमा अधिकाधिक गाते हो
बस उसी भाव का रूप हो जाते हो


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ सितम्बर २०१० 
कविता में
यह कहना होता नहीं
कि
बाबा की उपस्थिति का
भाव सघनता से
ह्रदय को स्पर्श कर गया कल
न्यूयार्क के बाल्डविन स्थित मंदिर में
जब
भारत से आयी एक
बाबा की परम भक्त वीणा गुप्ताजी
द्वारा बाबा की आराधना के बाद
उनके विग्रह से
विभूति प्रकटन के दृश्य का साक्षी बना
पहली बार

विभूति चरणों के साथ साथ
बाबा को पहनाये हुए
वस्त्र पर से भी उभर आयी थी

जो दिखा
वो चमत्कारिक था
पर जो नहीं दिखा
उसमें और भी बड़ा चमत्कार है

एक 
वो जो अनदेखा
अदृश्य
जुड़ कर हमसे
जोड़ता है हमें
अपार आन्तरिक समृद्धि से,
लील कर समस्त
चिंताएं
भर देता है
निर्मल, निश्छल प्रेम से
उस एक को
सौंपने समग्रता से स्वयं को
आरती करता हूँ
कविता दीप बन कर
ज्योत्स्ना फैलाती है
मुझे 
परम आनंद के
नए नए सोपान दिखाती है
और
फिर 
श्रीहरि के चरण छूकर
वही-कहीं लीन हो जाती है
साईं नाथ महाराज की जय !
ॐ श्री साईं राम गुरुदेव दत्ता!!

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ सितम्बर २०१०

1 comment:

POOJA... said...

ऐसे क्षण
सहेजने के लिए
निरंतर खुदको सहेजना होता है
शब्दों के पास
बैठ कर
नए नए ढंग से
सीखता हूँ खुदको सहेजना

पर शब्द असमर्थता जताते हैं
कहते हैं
जो तुम्हारा है
वही हम तुम्हें दे आते हैं
तुम जिस भाव की महिमा अधिकाधिक गाते हो
बस उसी भाव का रूप हो जाते हो

har lekhak kee vyathaa yahi hai...

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