(चित्र- ललित शाह ) |
बात अपनी छुपा रहा है कोई
यूं ही दामन छुडा रहा है कोई
याद टूटन की लेके साँसों में
आज फिर छटपटा रहा है कोई
फाड़ कर दर्द के सभी पन्ने
आधी पुस्तक पढ़ा रहा है कोई
मैंने पूछा, अधूरेपन का सबब
खुद को पूरा बता रहा है कोई
उसको अच्छा लगे है सो जाना
रतजगे में सुना रहा है कोई
दाग एक बात का मिटाने को
खुद से खुद को हटा रहा है कोई
मैंने सोचा था, मिल गयी मंजिल
पर नया दर दिखा रहा है कोई
अब अँधेरा ना छू सके हैं मुझे
ऐसे मुझमें समा गया है कोई
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ सितम्बर २०१०
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