(चित्र- मित्र ललित शाह के creative चित्र कोष से ) |
मुझमें
ये क्या है
जो बदल जाता है
रात से दिन तक
ये कौन है
जो नए नए सन्देश लेकर मेरे भीतर उभर आता है
दिन भर की
भागा-भागी में
कभी सोच ही नहीं पाता
इस विस्मित प्रवाह से मेरा क्या नाता है
बस सुबह सुबह
एक ठहरे हुए क्षण में
जब यह अपनी अनिर्वचनीय आभा अनावृत कर
मुझ पर अपनी कृपा लुटाता है
अपने अपार विस्तार की एक महीन सी
झलक दिखलाता है
तब इससे पूछ नहीं पाता
क्या ये ही है
जो दिन भर मुझे भूल-भुल्लैय्या में घुमाता है
और क्या है वह बात
जो फिसलने, गिरने और उठने के अनुभव देकर
ये बड़े धैर्य से निरंतर सिखलाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
बुधवार, ८ सितम्बर 2010
1 comment:
यही तो सतत प्रवाह है…………सुन्दर अभिव्यक्ति।
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