Wednesday, September 29, 2010

आत्मीय-स्पर्श

 
अब जीने के साथ साथ
जरूरी है
जताना भी
कि तुम जिंदा हो

अपने होने का अहसास 
औरों तक
पहुँचाने की कला
मार्केटिंग कहलाती है
वो समझदार लोग भी 
मूर्ख मान लिए जाते हैं
जिन्हें ये कला
अब तक नहीं आती है

आत्मीय-स्पर्श, संवेदनशील लोगों को ही
छू पाता है
अधिकतर लोगों का काम ऊपरी चमक से
चल जाता है
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
सितम्बर २९, 2010




6 comments:

Apanatva said...

are wah......
maza aagaya padkar .utkrusht abhivykti.......
amazing....

vandana gupta said...

behatreen abhivyakti.

Majaal said...

जिंदगी में कुछ न कुछ दिखावा करते रहिये,
मुर्दा समझ के गाढ़ न दे, करवटें बदलते रहिये !

खूबसूरत अभिव्यक्ति.. लिखते रहिये ...

प्रवीण पाण्डेय said...

अपने अस्तित्व की मार्केटिंग अपने से ही हो जाये और हम अपना महत्व जान पायें, स्वयं पर इससे बढ़कर उपकार नहीं हो सकता है।

Creative Manch said...

"अधिकतर लोगों का काम ऊपरी चमक से चल जाता है"

waah kya baat kah di aapne
is ek pankti ne hi sab kuchh bayan kar diya
bahut khoob
aabhaar



मिलिए ब्लॉग सितारों से

Swarajya karun said...

अपने होने के अहसास की मार्केटिंग ? आज की दुनिया में तो सभी इसमें लगे हुए हैं. आपने इसका अहसास कराया. धन्यवाद . यह नया प्रतीक अच्छा लगा .

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