Monday, May 26, 2014
Sunday, May 25, 2014
नए नेतृत्व की सौगात
आज
एक नए युग की शुरुआत
भारत के लिए
नए नेतृत्व की सौगात
सृजनात्मक चिंतन
स्फूर्तियुक्त मन
संभावनाएं नूतन
सूक्ष्म अपनापन
आज
एक नई दृष्टि का अवतरण
पुनर्व्यस्थित हो रहे
बहुत सारे समीकरण
शुभ हो, मंगल हो
सब समस्याओं का हल हो
सुरक्षित, सशक्त भारत का
भविष्य उज्जवल हो
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२५ मई २०१ यहां
(२६ मई २०१४ भारत में )
Saturday, May 24, 2014
नाटक के पात्र भर
ये होने लगा है
फेसबुक की खिड़कियों से टपकता है रस
इसी रस में सिमट रहे सम्बन्ध भी बस
वाल पर क्लिक क्लिक करते हुए खुलते हैं कुछ नए आयाम
दीखते है पराये शहरों में अपने, उनकी सुबह और शाम
यूं लगने लगा है
की हम एक दुसरे के लिए हम
हैं किसी नाटक के पात्र भर
ख़बरों के सहारे ज़िंदा सम्बन्ध
छूट गए साझे अनुभव वाले अवसर
- अशोक व्यास
Tuesday, May 20, 2014
उत्सव है स्वर्णिम साथ का
उत्सव है स्वर्णिम साथ का
आनंद बरसे इस बात का
प्रेम और सेवा का संगम
कृपामय नृत्य द्वारका नाथ का
भीम चाचाजी और चाचीजी का साथ
पूरे परिवार में माधुर्य की सौगात
गौरवशाली मिलन की पच्चासवीं वर्षगाँठ
श्रीनाथ जी की शरण में हो रहे हैं ठाट
बात हंसने-गाने, झूम जाने की
बधाई के मंगल गीत सुनने सुनाने की
संस्कार सरिता से आचमन कर
विशिष्ट युगल पर पुष्प बरसाने की
ह्रदय में प्रार्थना और उल्लास
भीम चाचाजी हैं सबके ख़ास
चाचीजी उनके लिए खासमखास
प्रेरक दाम्पत्य के उजले बरस पचास
रंग-रस से छाई बेला मतवाली
बाजे ढोल-मृदंग और थाली
सजती रहे यह धूम -धाम
चाचाजी - चाचीजी को प्रणाम
आत्मीयता के युगल कोष को वंदन
मस्त जय श्री कृष्ण वाला अभिनन्दन
जय हो !
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० मई २०१४
Sunday, May 18, 2014
अबकी बार, मेरी सी है सरकार
१
देख लिया जो, कथनी - करनी का अंतर
दिखला दिया, कमल पर मुहर लगा कर
२
पूर्व प्रधान मंत्री ने कहा,
नमो प्रधान करेगा देश का बंटाधार
पर जनता ने
छलकाया नमो पर विश्वास और प्यार
३
समझ गयी जनता
किसकी जुबान में सच्चाई
कौन कहे है झूठी कहानी,
जनादेश ने
माँ- बेटे की सरकार को
इस बार याद दिलाई नानी
४
कमल की शोभा से
पुलकित हुई वसुंधरा
कीचङ उछलने वालों के
मुख पर ही कीचङ गिरा
५
जान गए सब, वे नहीं जानती
भारतीयता का सार,
नहीं चला मैडम द्वारा
बहलाने , फुसलाने , डराने का प्रचार
६
कह दिया जनता ने
जिसे शहजादा कहता है राजनीति प्यार की
संकीर्णता है उसमें
वो जनता को शक्ति देने वाली बात है बेकार की
७
वो छिछोरे आरोपों से
नहीं बना पाये पतवार
ओछी राजनीति पर
हो गया कडा प्रहार
८
भारत गौरव प्रतिष्ठा का
सपना करने साकार
लो आ ही गयी इस बार,
एक जोरदार सरकार
९
क्षुद्र चिंतन नहीं, नमो यानि रचनात्मक उत्थान
मिल जुल कर, युग निर्माण, मेरा भारत महान
गरिमायुत, संयमित व्यवहार
आचरण में समन्वय का सार
श्रद्धा और आत्मीयता का श्रृंगार
अबकी बार, मेरी सी है सरकार
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१८ मई २०१४
Friday, May 16, 2014
सेवा व्रतधारी का सत्कार
सत्यमेव जयते!
खुला नवयुग प्रवेश का द्वार
सांस्कृतिक भारत की झंकार
सुना रही जन जन की हुंकार
अबकी बार, उत्साह अपार
समर्पण संग राष्ट्र प्रेम का सार
सेवा व्रतधारी का सत्कार
सकारात्मक सोच की सरगम
विकास की ओर बढ़ें कदम
भारत गौरव में मानवता का उत्थान
कर्म, निष्ठां, प्रगति, आत्म सम्मान
व्यर्थ न जाए वीरों का बलिदान
समय का रचनात्मक आव्हान
लम्बी चुनाव प्रक्रिया के इस पार
अबकी बार, बदल गया संसार
विरोध हुआ कितना जोरदार
पर आ गयी नमो सरकार
नमो प्रधान मंत्री असरदार
भारत माँ की जय जैकार
- अशोक व्यास , मई १६ २०१४
खुला नवयुग प्रवेश का द्वार
सांस्कृतिक भारत की झंकार
सुना रही जन जन की हुंकार
अबकी बार, उत्साह अपार
समर्पण संग राष्ट्र प्रेम का सार
सेवा व्रतधारी का सत्कार
सकारात्मक सोच की सरगम
विकास की ओर बढ़ें कदम
भारत गौरव में मानवता का उत्थान
कर्म, निष्ठां, प्रगति, आत्म सम्मान
व्यर्थ न जाए वीरों का बलिदान
समय का रचनात्मक आव्हान
लम्बी चुनाव प्रक्रिया के इस पार
अबकी बार, बदल गया संसार
विरोध हुआ कितना जोरदार
पर आ गयी नमो सरकार
नमो प्रधान मंत्री असरदार
भारत माँ की जय जैकार
- अशोक व्यास , मई १६ २०१४
Tuesday, May 13, 2014
सर तेरे दर ही झुकाऊँ
१
मेरा सर झुकने लगा है
पर तुम्हें कैसे बताऊँ
तुमने जो देखा है मंज़र
है गलत, कैसे जताऊँ
ख़्वाब की कश्ती में अब तक
एक पुरानी चाह कोमल
सूर्य की नन्ही किरन से
तुम हो उज्जवल और निश्छल
२
मेरा सर झुकने लगा है
अब इसे कैसे उठाऊं
बात जो जानी है तुमने
उससे क्या तुमको बचाऊँ
मैं सफ़र तय कर चुका हूँ
रास्ते कैसे दिखाऊँ
आँख जो अब है तुम्हारी
उससे क्या आँखें मिलाऊँ
३
मेरा सर झुंकने न पाये
इस ग़रज़ से क्या सिखाऊँ
हो सके तो जो न जाना
अब वो सब भी जान पाऊँ
जान और अनजान में
बस एक जरा सा फासला है
इस जरा से फ़ासले में
जी रहा हूँ, मर ना जाऊँ
मेरा सर झुकने न पाये
बात ये भी क्यूँ उठाऊँ
अब कहीं क्यूँ कर झुकेगा
सर तेरे दर ही झुकाऊँ
जान और अनजान में
बस एक जरा सा फासला है
इस जरा से फ़ासले में
जी रहा हूँ, मर ना जाऊँ
मेरा सर झुकने न पाये
बात ये भी क्यूँ उठाऊँ
अब कहीं क्यूँ कर झुकेगा
सर तेरे दर ही झुकाऊँ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
Thursday, May 1, 2014
ये कैसा जादू है
रास्ता इस बार
नहीं जा रहा
तुम्हारी गली तक
मोड़ खो गया कहीं
या किसी ने चुरा ही लिया रास्ता
भटक भटक कर
थक हार कर
सुस्ताने बैठा हूँ
यहाँ
जिस पेड़ की छाँव में
सहसा
दिखाई दी
एक खिड़की
जिसमें से झाँक गयी तुम्हारी छवि
ये कैसा जादू है
तलाश छोड़ने पर
हार मान लेने पर
मिल जाता है
पता तुम्हारा
या शायद
खुल जाती हैं
आँखें
अपने प्रयास छोड़ने पर
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ मई २०१४
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