Saturday, May 24, 2014

नाटक के पात्र भर



ये होने लगा है 
फेसबुक की खिड़कियों से टपकता है रस 
इसी रस में सिमट रहे सम्बन्ध भी बस 
वाल पर क्लिक क्लिक करते हुए खुलते हैं कुछ नए आयाम 
दीखते है पराये शहरों में अपने, उनकी सुबह और शाम 
यूं लगने लगा है 
की हम एक दुसरे के लिए हम 
हैं किसी नाटक के पात्र भर
ख़बरों के सहारे ज़िंदा सम्बन्ध 
छूट गए साझे अनुभव वाले अवसर


 - अशोक व्यास

No comments:

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...