ये होने लगा है
फेसबुक की खिड़कियों से टपकता है रस
इसी रस में सिमट रहे सम्बन्ध भी बस
वाल पर क्लिक क्लिक करते हुए खुलते हैं कुछ नए आयाम
दीखते है पराये शहरों में अपने, उनकी सुबह और शाम
यूं लगने लगा है
की हम एक दुसरे के लिए हम
हैं किसी नाटक के पात्र भर
ख़बरों के सहारे ज़िंदा सम्बन्ध
छूट गए साझे अनुभव वाले अवसर
- अशोक व्यास
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