रास्ता इस बार
नहीं जा रहा
तुम्हारी गली तक
मोड़ खो गया कहीं
या किसी ने चुरा ही लिया रास्ता
भटक भटक कर
थक हार कर
सुस्ताने बैठा हूँ
यहाँ
जिस पेड़ की छाँव में
सहसा
दिखाई दी
एक खिड़की
जिसमें से झाँक गयी तुम्हारी छवि
ये कैसा जादू है
तलाश छोड़ने पर
हार मान लेने पर
मिल जाता है
पता तुम्हारा
या शायद
खुल जाती हैं
आँखें
अपने प्रयास छोड़ने पर
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ मई २०१४
3 comments:
nirasha ko asha mey badlana sikhati rachna..bahut khoob
सुंदर रचना
बहुत सुंदर, क्या कहने।
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