Friday, February 26, 2016
Thursday, February 18, 2016
भारत माँ की जय जयकार
तिलमिलाहट में भी ये ध्यान रहे
न्याय पथ पर न घमासान रहे
सजा देने के सलीके का मान रखना है
चाहे जितना भी असंतोष का उफान रहे
अशोक व्यास
नफरत विष, अमृत है प्यार
प्रबुद्ध भारत, शुद्ध विचार
एक ही नारा, अपना नारा
भारत है प्राणों से प्यारा
एक दो तीन चार
भारत माँ से हमको प्यार
हिल मिल बोलो बारम्बार
भारत माँ की जय जयकार
भारत जीवन, भारत प्राण
भारत प्रेम है अमृत बाण
हम अपना कर्तव्य निभाएं
भारत गौरव नित्य बढ़ाएं
अपनेपन का अक्षय गान
भारत की सच्ची पहचान
अशोक व्यास
सार्थक संवाद
उसके हमदर्द बन अपनों पे न आघात करो
छोडो ये पैरवी, अब और कोई बात करो
-अशोक व्यास
विरासत हमारी सदियों हमें जो कुछ सिखाती है
उस सीख की समझ, हमारी प्रतिक्रिया दिखाती है
हममें कितना उतावलापन है, कितना संयम है
क्या हम सुई और तलवार को परखने में सक्षम हैं ?
यदि हम देख नहीं पाते दृश्य विहंगम
तो हमें नचाने लगेगी, शत्रु की सरगम
अब घटिया नारों का सूत्र ले हम लोग करने लगे एक दूसरे की जांच पड़ताल
क्या विद्यार्थी, क्या नेता, क्या पत्रकार, लगभग सब का हो गया है यही हाल
त्याग, तपस्या की परम्परा को रखें याद
जाग्रत रहे अखंड भारत का प्रखर नाद
बवंडर है जिस बात का, उसकी तह तक जाना है
ऐसे भारत विरोधी स्वर को अब जड़ से मिटाना है
क्यों एक दूसरे पर कीचड उछाल कर दुश्मन की शक्ति बढ़ाएं
आवश्यक है राष्ट्रप्रेम वाली गहरी सोच से सार्थक संवाद जगाएं
अशोक व्यास
१८ फरवरी २०१६
Tuesday, February 16, 2016
छल की खबर
कुछ दिनों में लोग भूलने लगेंगे वो नारे, जिनमें शपथ थी राष्ट्र विनाश की
आलोचना होने लगेगी, सत्य को सत्य कहने वालों के सटीक प्रयास की
राष्ट्र भक्ति में डूबे आक्रोशित स्वर के विरोध में व्यस्थित मोर्चे निकाले जाएंगे
अपराधी फिर सुनियोजित ढंग से प्रजातान्त्रिक भोलेपन का बड़ा लाभ उठाएंगे
कोतवाल को डाँट पिलाने कुछ चोर फिर इक्कठे होकर आवाज उठाएंगे
अपने निर्दोष होने का ढिंढोरा विदेशी संचार माध्यमों तक भी पहुंचाएंगे
ये होता लगे है अब आइने में हम अपना ही चेहरा नहीं देख पाएंगे
पर इस छल की खबर लेकर कौन सी अदालत का द्वार खटखटाएंगे
वो आने वाली पीढ़ी से राष्ट्र विरोधी जहर सरेआम उगलवायें
और क्या हम प्रतिकार करने का सही तरीका ढूंढते रह जाएंगे ?
अशोक व्यास
१६ फरवरी २०१६
प्यार की बात करने वालों के लिए है डर
नफरत की वकालत में क्यों लग गया नगर
नए तर्क की परतों में छुपा रहे मिल कर
वो अपनी घिनौनी सोच का नापाक ज़हर
कौन अपने कौन पराये
किस ने उन्हें दुश्मनो से सहानुभूति जताना सिखाया
क्यूँ उन्हें हमारे घावों पर नमक छिड़कना सुहाया
वो अपने देश के टुकड़े करने की नीयत जताते हैं
जिस नाव में सवार, उसी में छेद करते जाते हैं
नफरत की भाषा, बारूदी नारे, ये जो
जवाहर लाल यूनिवर्सिटी में लगाते हैं
अपनी कृतघ्नता का ढिंढोरा पीटते
इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बताते हैं
वोटो की रोटी सेकने
कुछ नेता आस्तीन में पलते सांपों को दूध पिलाते हैं
सरल, निश्छल भारतीय
वोट बैंक की चक्की में पिसते चले जाते हैं
अब ये होने लगा है की
वे दुश्मन का सन्देश लिए
हमारे घर आकर पीट रहे हैं ढोल
सवाल है अस्त्तित्व का, सुरक्षा का, स्वाभिमान का,
मेरे भोले भारतीय भैय्या,
अब तू हल्ला बोल
वे जो बौद्धिकता की आड़ में
पल रहे देश के गद्दार हैं
उनके पास बारूद से अधिक
विस्फोटक विचार हैं
क्यों उन सिरफिरों ने भारत माँ को लहूलुहान करने के वहशी नारे लगाए
ऐसे पढ़े लिखों से अनपढ़ अच्छे, जो जानते तो हैं कौन अपने कौन पराये
अशोक व्यास
१६ फरवरी २०१६
Thursday, February 4, 2016
आलोक वृत्त
शिकायतों की श्रंखला
धीरे धीरे मिटाता हूँ
उपहार सुविधा वाले
जब तब
दे देकर स्वयं को
तात्कालिकता से परे
शाश्वत की सुध लेने का
हौसला बढ़ाता हूँ
२
थप थप बूंदों की
सुनता हूँ
चुप चाप रात में
अकेला
आलोक वृत्त के फैलाव का केंद्र
मैं
साँसों ही साँसों में
तुझसे बतियाता हूँ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
४ फरवरी २०१६
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