१
लौटते हुए अपने घर से
इस बार
जब उसने देखा
बाहें फैला कर बुलाता हुआ आसमान
उसे लगा
खुल गयी सब गांठें
एक नन्हे से क्षण में
सहसा, सब कुछ हो गया आसान
२
दूर तक
एक उसका साया है
जिसने अपना
हमें बनाया है
उसकी खातिर ये
सांस का मेला
वो भी साँसों के
साथ आया है
३
तेरे नाम के गीतों से सब काम चलाया करता हूँ
तेरे दर ले कर आते रास्तों पे जाया करता हूँ
मैं खोया खोया होता हूँ बहकी बहकी बातों में
पर तेरी पहचान लिए मंजिल तक आया करता हूँ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१७ सितम्बर २०१३
1 comment:
जो अनन्त, हैं अंग तुम्हारे
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