यह
जो मुक्ति के नए चरण हैं
इतने शांत, इतने शुद्ध, सौम्य
यहाँ
न कोइ पुराना स्वर
न बीते दिनों के पदचाप
सब कुछ
असीम उजियारे में धुला हुआ
मौन में घुली हुई
तन्मयता की चांदनी
अब जब चल दिया हूँ
युधिष्ठिर की तरह
पिघल कर मिट जाने तो प्रस्तुत हूँ
इस पथ पर
जहां
मिट जाना
अमिट हो जाना है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
अक्टूबर ११, २०१३
1 comment:
मिट जाना कोई खेद नहीं है, उस जग में।
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