इस बार
कोइ रचनात्मकता की बरखा नहीं
न ही
अपने सत्यान्वेषी होने का भ्रम
इस बार
उसे नहीं करना था
किसी सुन्दर गलियारे में प्रवेश कर
अनदेखे को देखने का श्रम
इस बार
उसने कविता को सिर्फ समय बिताने के लिए बुलाया
और अपना मंतव्य भी
कविता को साफ़ साफ़ शब्दों में बताया
इस बार
न वो मुस्कुराया, न उसने कोइ संकल्प गीत गाया
और कुछ हो न हो
पर प्यार है तुमसे, कविता के साथ बैठ, ज़िन्दगी को ये बताया
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ सितम्बर २०१३
1 comment:
व्यक्त मनस हो..
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