क्यों
किसके लिए
कब तक
सवाल इस तरह की रंगत वाले
सारे के सारे
छोड़ कर तो आया था
उसकी देहरी पर
पर मिल जाते हैं
अब भी
मेरी सार्थकता पर प्रश्न चिन्ह बन कर
उभर आते सवाल
और फिर
उन सबको
स्मरण करवाता
उनका सही स्थान
वह मूल
जहां से सुलभ है
उनका अभीष्ठ
इस तरह
पग पग
मुक्ति रचने के लिए भी
करना तो होता है
स्मरण तुम्हारा
ओ अविनाशी
तो क्या
सत्यनिष्ठ जीवन का अर्थ बस
सजग, सतत स्मरण है तुम्हारा
जिसमें से झरती है
गतिमान मुक्ति की सुन्दर धारा
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
६ जून २ ० १ ३
गुरूवार
1 comment:
एक केन्द्र, चहुँ ओर चले हम।
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