१
अब यह भी नहीं
की
उसके चले जाने से पहले
यह कह लूं
वह कर दूं
अब यह भी नहीं
की
सोच लूं, जाने को जा सकता हूँ
मैं ही
उसके जाने के पहले
२
अब
सोच कर करने की उमंग नहीं है
अब
बस देखना भर है
वह
जो
हो जाता हैं मेरे द्वारा
मेरे न होने की सूरत में
३
इस तरह भी हुआ जाता है
न होकर
और यूं होना
ना जाने कैसे
ले आता है
उस पूर्णता का रस
जिसका
पता भी न था
हो- होकर होते जाने के अधीर प्रयासों में
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
५ जून २ ० १ ३
1 comment:
जहाँ समय नहीं, आगे पीछे का बोध नहीं, बस उसी स्थान पर पूर्णता की चाह।
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