Monday, June 3, 2013

फूलों की नई नई घाटियाँ



शब्दों का हाथ थाम 
उतर कर  शिखर से 
आँख मूँद कर 
कुछ देर
अब 
 देखता हूँ 
फूलों की नई नई घाटियाँ 
जहाँ तक ले आये हैं शब्द 

२ 

आविष्कार अपने भीतर 
करना है जिसका 
वह मैं हूँ 
या तुम 
या वह एक 
जिसमें घुल मिलकर 
मैं और तुम 
जब 
अपना अपना परिचय छोड़ कर 
सम्माहित होते 
उस एक मैं 
उम्र आता है 
सारी सृष्टि का सौंदर्य 
और 
पसर जाता है 
 आदि-अंत रहित मौन सा 
 
३ 
 
इस बार भी 
छेड़ कर शाखा शाश्वत वृक्ष की 
भीग लिया हूँ 
करुनामय स्पर्श में 
 
अपने अंतस में 
यह नूतनता की नमी जो है 
इसमें 
खिल रहे  हैं
कृतज्ञता पुष्प 
 
इन्हें तुम्हारी चरणों तक पहुंचाने 
आव्हान कर रहा तुम्हारा 
यह जानते हुए भी की 
हर पुष्प के खिलने में भी 
अनुस्यूत है 
उपस्थिति तुम्हारी 



अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
३ जून २० १ ३

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

स्वयं को शब्दों में व्यक्त करें या निशब्द रहें।

Anupama Tripathi said...

अद्भुत ...!!

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...