शब्द महल में सांस सजाई
सारे जग की दौलत पाई
सुन्दरता के रूप नित नए
अक्षय आनंद की अंगड़ाई
पथ पर किसका हुआ बसेरा
कुछ दूरी का तेरा-मेरा
शब्दालोक जगा कर देखा
लुप्त हो गया घेरा
आपा धापी दूर हटाई
शांत सुधा ऐसे बह आई
रोम रोम ने शुद्ध प्रेम से
शाश्वत जी की महिमा गाई
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ ३ अप्रैल २ ० १ ३
1 comment:
सुख बस प्रेम में व्यापा..
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