जैसे दौड़ता है नन्हा बच्चा
कमरे में
इधर से उधर
उधर से इधर बेमतलब
बस
उत्सव मनाता
इस बात का
की उसने
चलने के साथ साथ
सीख लिया है
अब
दौड़ लेना भी
और
सीखे हुए का अभ्यास करने की क्रिया पर
मतलब की मांग आरोपित कर देना
सीखा नहीं उसने अब तक
ऐसे ही
लिखता हूँ
शब्दों की अंगुली थाम कर
इस दिशा से उस दिशा तक
उस दिशा से इस दिशा तक
ढूंढते हुए
एक उभयनिष्ठ तारतम्य
किसी अनाम क्षण में
खुल जाती है
मुझ पर
समग्रता सृष्टि की
यूं ही
खेल खेल में
पर
दौड़ जो है यह
अभिव्यक्ति की
अभ्यास मात्र है
अपने होने की क्रिया का
उत्सव मनाते हुए
उमड़ आता है
जो आनंद सहज ही
इसे लेकर बैठ नहीं जाना है
दौड़ना है और
दौड़ते दौड़ते
तुम तक आना है
इस परिपूर्णता के स्पर्श से
हर दिशा को छू जाना है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
९ मार्च २ ३
2 comments:
अथक प्रयास ही है जीवन ......!!
बहुत सुन्दर भाव .......
बच्चों का आनन्द माँ को भाता है।
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