अब झगड़ता नहीं
स्वीकार लेता हूँ
तुम्हारा दिया
हर अनुभव
हर दिन
और
तत्काल छूट जाती है
छटपटाहट
दिख पड़ती है
कल्याणकारी आभा
हर स्पंदन में
छू पाता हूँ
आनंद की रसमय धारा
बह रही जो
मेरे जीवन में
तुम्हारी चरण रज छूकर
कभी इसे 'कृपा नदी' का संबोधन दे
नमन करता हूँ
कभी कृतज्ञता के वस्त्र पहन
डुबकी लगा इस मंगल धारा में
उज्जीवित हो
स्वागत करता हूँ
एक नए दिवस का
प्रेम, प्रज्ञा और परिपूर्णता के साथ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२३ अप्रैल २०१२
1 comment:
हर दिन एक नया दिन है।
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