Monday, April 23, 2012

आनंद की रसमय धारा


अब झगड़ता नहीं
स्वीकार लेता हूँ
तुम्हारा दिया
हर अनुभव
हर दिन
और
तत्काल छूट जाती है
छटपटाहट
दिख पड़ती है
कल्याणकारी आभा
हर स्पंदन में
छू पाता हूँ
आनंद की रसमय धारा
बह रही जो
मेरे जीवन में
तुम्हारी चरण रज छूकर
कभी इसे 'कृपा नदी' का संबोधन दे
नमन करता हूँ
कभी कृतज्ञता के वस्त्र पहन
डुबकी लगा इस मंगल धारा में
उज्जीवित हो
स्वागत करता हूँ
एक नए दिवस का
प्रेम, प्रज्ञा और  परिपूर्णता के साथ

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२३ अप्रैल २०१२  
             

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

हर दिन एक नया दिन है।

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