आश्चर्य है
देखते-देखते
किस तरह बनती हैं आदतें
दिन प्रतिदिन
हमारे द्वारा
एक ही तरह के आचरण का अभ्यास करते करते
और फिर
धीरे धीरे
यंत्रवत
हम वही दोहराने लगते हैं
जिसका बीज करते हैं आरोपित
जाने-अनजाने
उसी क्रिया को दोहरा-दोहरा कर
२
और
इससे बड़ा आश्चर्य ये
की
स्वतंत्रता पूर्वक
जिन आदतों को
जन्म दे सकते हैं हम
धीरे-धीरे
हम उन्ही आदतों के
आधीन
भुला बैठते हैं
अपना स्वतंत्र चिंतन
३
जाग्रत रहने के अर्थ में
निहित है
ये भाव की
होती रहे निरंतर
हमें
अपनी स्वतंत्रता की अनुभूति
अशोक व्यास
२३ अप्रैल २०१२
न्यूयार्क, अमेरिका
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