यह जो
अनायास प्रकटन है
उजियारे सौंदर्य का
धूप की तुलिका
रच देती है
कहीं पत्तियों, कहीं भवनों की आकृति पर
एक नूतन संयोजन
अव्यक्त आनंद का
इसे सहेजना है यदि
तो
जाग्रत होना है
इस क्षण
चित्र चेतना पटल पर
शाश्वत की
स्निग्ध, कोमल मुस्कान का
ठहरा है जो
इस क्षण,
इसी में पूर्णता है
कहते हैं
प्रसन्नता से खिल कर गुरु
'नित्य जाग्रत रह कर
तुम अपने जीवन को
पूर्णता का प्रवाह बनाओ ना!'
फिर अपने मौन में
सोच रहे हैं शायद
"पूर्णता नित्य-संगिनी है
पर जाग्रत रहे बिना
इसे न कोई जान पाए
न अपनाए'
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० अप्रैल २०१२
1 comment:
पूर्णता का हर पल जगमगाता है।
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