उस दिन
सूरज ने सपने में आकर
पूछ लिया प्रश्न
मैं अपनी किरणें भेज कर
उजियारा करता हूँ
तुम्हारा पथ
निकाल देता हूँ
अँधेरे में डूबा तुम्हारा सारा संसार
ताकि
तुम जुड़ सको सबसे
इसके बदले में
मुझे क्या दोगे आज तुम
सपने में भी
असहमति व्यक्त करते हुए
कहा था मैं ने
सूरज से
'ये मनुष्य की तरह
लेन-देन की बातें
आपको शोभा नहीं देती
आपका काम है देना
बस देते रहें'
सूरज मुस्कुराये
'मैं
बस देता रहूँ
बदले में कुछ न मांगू
ठीक है!
और तुम?"
सूरज के इस प्रश्न के साथ ही
मैं
नींद से जागा
खिड़की से
सूरज के आगमन के संकेत
घर में
उजियारा बिखेर रहे थे
बिना किसी अपेक्षा के
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१२ मार्च २०१२
3 comments:
हमने अपने संसार को अँधेरे में डुबा रखा हुआ है और सूर्य से आशा करते हैं कि वह हमारा भला करता रहेगा।
न समझा जब तक कि सूरज मेरा भी है
अंधेरों से घबरा भटकता ही रहा तब तक
अपेक्षाओं का अम्बार लिए रहा जब तक
अधूरा ही अपने को समझ रहा अब तक
सुन्दर प्रस्तुति !
आभार !
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