दिन के शुरू होने के साथ
मुझे अपनी गोद में
ले लेते हैं उसके हाथ
समय की पालकी पर
बिठा कर
वो मुझे
दिन भर घुमाता है
कभी खिलाता है
कभी खेल खेल में
कर्म का संतोष दिलाता है
कभी थपकियाँ देकर
बीच बाज़ार में
मुझे सुलाता है
मैं देखता हूँ
मेरी कुछ मांगे
वो पूरी करता जाता है
पर कई बार
मुस्कुरा कर
मेरे कहे को
टाल भी जाता है
मुझे सुरक्षा, शांति, संतोष
सब कुछ
उससे सम्बंधित होने के कारण
मिल जाता है
पर कभी कभी सोचता हूँ
उसे मुझसे क्या
मिल पाता है?
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० जन 2012
1 comment:
समर्पण में असीम शान्ति है।
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