यह एक सूक्ष्म सा तंतु
जो जोड़े रहता है
हमें
किसी सम्बन्ध
या
किसी कर्म की
लय से,
इस
विस्मयकारी शक्ति को
निहारते हुए भी
नहीं पहचान पाता
इसके नित्य परिवर्तनशील स्वभाव का खेल
कभी उन्नत लहर की तरह
मुझे धारण कर
चलता जाता है
यह तंतु
दिन प्रतिदिन
मुझे सृजन केंद्र बना कर
रचता जाता है
कुछ आल्हादकारी अभिव्यक्ति रूप
और
कभी
सबसे असम्पृक्त कर मुझे
ना जाने
कहाँ
स्वयं भी
शांति, मगन अपनी पूर्णता में
सुस्ताता है
ये
अनंत स्त्रोत से
शक्ति संचय करने
मुझसे दूरी बनाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ जनवरी 2012
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