Sunday, January 8, 2012

एक अदृश्य प्रसन्नता


 
और फिर
कुछ दिन रास्ता बदल देने के बाद
उसे समझ में आया
गुलमोहर के पेड़ से
उसके हर दिन का 
एक गहरा सम्बन्ध है
 
पार्क के किनारे
कबूतरों को चुग्गा देने से
बिछा करती है
एक अदृश्य प्रसन्नता
उसके मन में
सारे दिन
 
और
स्कूल जाते बच्चों को
मुस्कुरा कर हाथ हिलाना भी
एक ऐसी क्रिया है
जो निश्छल रस घोल देती है
उसकी साँसे में
 
कुछ दिन रास्ता बदलने के बाद
फिर पुराने रास्ते पर
आकर
उसे यूं लगा
जैसे अपने जीवन से
फिर हो गयी मुलाक़ात
 
 
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
८ जनवरी २०११             

3 comments:

Rakesh Kumar said...

पार्क के किनारे कबूतरों को चुग्गा देने से बिछा करती है एक अदृश्य प्रसन्नता उसके मन में सारे दिन और स्कूल जाते बच्चों को मुस्कुरा कर हाथ हिलाना भी एक ऐसी क्रिया है जो निश्छल रस घोल देती है उसकी साँसे में

कबूतरों की भूख को तृप्त कराने में और अबोध बचपन में ईश्वर यानि सत्-चित-आनन्द के दर्शन सहज ही होते हैं.

आपने मेल से जो टिप्पणी मुझे भेजी
उसे हनुमान जी को अर्पित कर दिया है.

आपके दर्शन दुर्लभ क्यूँ हो रहें है जी?

Anupama Tripathi said...

और
स्कूल जाते बच्चों को
मुस्कुरा कर हाथ हिलाना भी
एक ऐसी क्रिया है
जो निश्छल रस घोल देती है
उसकी साँसे में

sunder bhav....

प्रवीण पाण्डेय said...

जीवन के कुछ रास्ते नियत होते हैं।

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