Friday, January 6, 2012

समय की परिधि लांघ कर


इतने दिनों बाद
फिर यहाँ से देख रहा हूँ
जब तुम्हें
नयेपन का उजियारा
छिटका है
इस छोर से उस छोर तक

मेरी मुस्कान में
उपहार से खनक रहे हैं
उसकी स्मृति के

हर तरफ
उसे देखना नहीं हो रहा पर
कण कण
दे रहा है आश्वस्ति
उसके होने की

अब भी
मौन आलिंगनबद्ध कर मुझे
तत्पर है
उसके परम शांति नगर में ले जाने को
जहाँ 
शब्द अपना आकार छोड़ कर
लीन हो जाते हैं
सीमा रहित अर्थ प्रवाह में

यह लबालब आनंद
मुझसे हो न हो
मुझमें भी है तो अवश्य
जैसे की तुममें भी है
तभी तो 
ये शब्द
अनर्गल प्रलाप नहीं
अर्थपूर्ण संकेत से भरे लग रहे हैं तुम्हें

और तुम्हारे लिए ही है
यह निमंत्रण
चलें
मौन के द्वार से
अपने अपने आनंद का उत्सव मनाएं
कुछ देर
समय की परिधि लांघ कर
स्वयं को छू आयें

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका 
६ जनवरी २०११ 

3 comments:

Amrita Tanmay said...

समय की परिधि लांघ कर स्वयं को छू लेना ..अति सुन्दर..

Rakesh Kumar said...

आपको एक हफ्ते पूर्व निम्न सन्देश मेल किया था.


"अशोक जी, आपसे ब्लॉग जगत में परिचय होना मेरे लिए परम सौभाग्य
की बात है.बहुत कुछ सीखा और जाना है आपसे.इस माने में वर्ष
२०११ मेरे लिए बहुत शुभ और अच्छा रहा.

मैं दुआ और कामना करता हूँ की आनेवाला नववर्ष आपके हमारे जीवन
में नित खुशहाली और मंगलकारी सन्देश लेकर आये.

नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ."


आशा है मेरी शुभकामनाएँ आपको स्वीकार्य होंगीं.

आपकी सुन्दर प्रस्तुति हमेशा ही मन को प्रसन्न कर देती है.

मैंने अपने ब्लॉग पर 'हनुमान लीला भाग-२'
प्रकाशित की है.समय मिलने पर दर्शन जरूर दीजियेगा.आपने पिछली बार अपनी सुन्दर टिप्पणी मेल की थी,जिसे मैंने अपने ब्लॉग पर पेस्ट कर दिया था.

इस बार दर्शन दीजियेगा,अशोक जी.
आपके शुभ दर्शन से मेरा ब्लॉग आनन्द में डूब शोकरहित हो जायेगा जी.

Ashok Vyas said...

राकेशजी
आपकी विनम्रता का कायल हूँ
शिरडी बाबा पर एक नूतन कार्यक्रम
'शिरडी साईं, विश्व साईं' की तैय्यारी में
लगा रहा, आनंद के साथ,
कविता लिखने का क्रम भी कुछ दिन
छूट गया
नव वर्ष पर अभिनन्दन के क्रम से भी
दूर रहा, आपका आभार और धन्यवाद.
वैसे साधना का पथ फिसलन से भरा है
कभी भी अहंकार छा जाए, गुरुचरणों
के आश्रय से द्रष्टि हटे, तो बड़ी चोट
लगती है
शेष फिर
सादर नमन

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