तो फिर से
मुस्कुरा कर
देखा उसने
अपने चारो ओर
एक पावन परिधि को
एक शुभ्र घेरा
जैसे
माँ पार्वती ने शिव-सम्मती से
बना दिया हो
उसके चारों ओर
गणपति स्वरुप मंगल-चक्र,
और फिर
मुस्कुरा कर
ध्यानस्थ वह
हो गया तन्मय
गुरूमय मौन से निखरे
परम शांत आकाश में
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२७ दिसंबर २०११
2 comments:
बहुत सुन्दर रचना !
मेरी नई रचना पे आपका स्वागत है !
sunder rachna ..
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