Tuesday, December 27, 2011

परम शांत आकाश में

 
तो फिर से
मुस्कुरा कर
देखा उसने
अपने चारो ओर
एक पावन परिधि को

एक शुभ्र घेरा
जैसे
माँ पार्वती ने शिव-सम्मती से
बना दिया हो
उसके चारों ओर 
गणपति स्वरुप मंगल-चक्र,
 
और फिर
मुस्कुरा कर
 ध्यानस्थ वह 
हो गया तन्मय
गुरूमय मौन से निखरे
परम शांत आकाश में



अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२७ दिसंबर २०११  
 
  

2 comments:

Jeevan Pushp said...

बहुत सुन्दर रचना !
मेरी नई रचना पे आपका स्वागत है !

Anupama Tripathi said...

sunder rachna ..

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...