रसमय
तन्मय
चिन्मय मन
रमे राम में
निर्भय मन
अमृत धार
निमग्न हुआ जग
तुझमें घुल कर
अद्वय मन
२
आनंद के सुर ताल उजागर करता है
परम शांति का सार दिवाकर भरता है
किरण किरण में उसी छटा के दरसन है
पग पग जिसका सुमिरन किये संवरता है
३
बात पहुँची परदे के पार
प्राप्य पा गयी पुकार
द्वार-द्वार जो मुस्काए है
पग पग उसका ही सत्कार
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ दिसंबर २०११
1 comment:
हर तरंग उस सुख सागर की।
Post a Comment