कल और आज के बीच
दिन तो एक ही बीता
पर आज
कुछ नया सा लगा
दर्पण के सामने
आत्म-सौन्दर्य में नहाई मुस्कान
जिस पर किसी और का नहीं जा सकता ध्यान
पर मुझे दिखी एक क्षण अपनी आँखों में उसकी पहचान
जिसका साँसों में चलता रहता है गुणगान
कल और आज के बीच
दिन को एक ही बीता
पर
कितना कुछ बीत गया
और यूँ लगता है
जिसे जीतना चाहिए था
वो जीत गया
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ दिसम्बर २०११
2 comments:
हर दिन कुछ न कुछ नया दे जाता है।
कल और आज के बीच
दिन को एक ही बीता
पर
कितना कुछ बीत गया
और यूँ लगता है
जिसे जीतना चाहिए था
वो जीत गया
जिसने उसको समझा और पाया वही जीता.
नित प्रयास भी होता रहे तो यह भी जीत ही है.
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