अकेला पर्वत
चुपचाप मंदिर
सूखे पत्ते भाग भाग कर
महादेव की पहरेदारी करते
हवा सनसना कर महीन भक्ति गीत सुनाती
अपनी साँसें सहेज कर
जिस क्षण वह
प्रविष्ट हुआ मंदिर में
नगर के कोलाहल से दूर
सहसा झुक गया शिवलिंग के सामने
किसी और को दिखाने के लिए नहीं
अपनी आदत से भी नहीं
बस
एक भाव के कारण
जो उसने
पहले कभी नहीं जाना था
तो क्या
ईश्वर जब अपना सम्बन्ध जताते हैं
पहले हमें कहीं अकेले में बुलाते हैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१० दिसंबर २०११
3 comments:
सबका अपना व्यक्तिगत संबंध है, ईश्वर से।
तो क्या
ईश्वर जब अपना सम्बन्ध जताते हैं
पहले हमें कहीं अकेले में बुलाते हैं
मेरी समझ में तो ईश्वर जब अपना
सम्बन्ध जताते हैं,सब ओर वही ही
नजर आते हैं.फिर मैं और हम कहाँ,
हम में भी तो वही नजर आते हैं.
ईस्वार का सम्बन्ध सीधा ह्रदय और मन से होता है शायद
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