आज वो
विस्मित था
किरण के स्पर्श से
पूरी तरह स्वस्थ होकर
स्फूर्ति में जगमग
अपने सम्पूर्ण सौदर्य के प्रकटन पर
फिर छु गया उसे
अपना ही
अतुलित वैभव
काल रेखाओं से परे
एक अनाम बोध
धर गया अक्षय आश्वस्ति
मगन अपनी मौज में
सांस लहर पर
बहते बहते
उसे स्मरण थी
अपनी चिर स्थिरता
परिपूर्णता से ओत-प्रोत
अपनी जाग्रत उपस्थिति में
कर रहा था स्वीकार वह
दृश्य-अदृश्य को
इस तरह जैसे
सबमें होकर भी
सबसे परे हो
उसमें कुछ ऐसा
जिससे सब कुछ है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१४ दिसम्बर २०११
4 comments:
पूर्णता की खोज में अपूर्णता का आक्षेप।
बहुत सुन्दर !
बहुत खूब सर!
सादर
बेहद ही गहन ..प्रस्तुति...शुभ कामनाएं ..
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