Wednesday, December 14, 2011

जिससे सब कुछ है

 
आज वो
विस्मित था
किरण के स्पर्श से
पूरी तरह स्वस्थ होकर
स्फूर्ति में जगमग
अपने सम्पूर्ण सौदर्य के प्रकटन पर
 
फिर छु गया उसे
अपना ही
अतुलित वैभव 
काल रेखाओं से परे
एक अनाम बोध
धर गया अक्षय आश्वस्ति
 
मगन अपनी मौज में
सांस लहर पर 
बहते बहते
उसे स्मरण थी
अपनी चिर स्थिरता
 
परिपूर्णता से ओत-प्रोत
अपनी जाग्रत उपस्थिति में
कर रहा था स्वीकार वह
दृश्य-अदृश्य को 
इस तरह जैसे
सबमें होकर भी
सबसे परे हो
उसमें कुछ ऐसा
जिससे सब कुछ है 
 
 
 
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका 
१४ दिसम्बर २०११              

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

पूर्णता की खोज में अपूर्णता का आक्षेप।

Jeevan Pushp said...

बहुत सुन्दर !

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत खूब सर!

सादर

Unknown said...

बेहद ही गहन ..प्रस्तुति...शुभ कामनाएं ..

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