Saturday, November 19, 2011

छायाओं के आकार







 
किसी के अद्रश्य हाथों ने
भर दिया
कमरे में 
झकाझक उजाला,
सज गयी
इस क्षण के गले में
आस की जयमाला
  
 

कमरे के केंद्र में बैठ मैं
छायाओं के आकार बनाते
इस सौम्य उजाले के
मौन खेल देख कर
मुस्कुराता हूँ
और
एक अद्रश्य उपस्थिति को
गले लगाने
अपनी बाहें फैलाता हूँ 
 
 
 
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ नवम्बर 2011           

4 comments:

Unknown said...

betareen soch

कुमार संतोष said...

Sunder

vandana gupta said...

waah waah kya bat kahi hai

प्रवीण पाण्डेय said...

मौन को अंधकार प्रकाशित है आजकल।

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...