(चित्र- गीता सेतिया) |
कविता कहाँ से आती है
कहाँ छुप जाती है
कभी दिखती नहीं खुले मैदान में
कभी घुस आती है बंद मकान में
कभी सूरज की किरणों की बात बताती है
कभी चांदनी की शिकायत कर इठलाती है
कविता न जाने
किस जन्म की साथी है
जन्म मृत्यु से परे की
बात भी सुनाती है
कभी कभी इतना आश्वस्त कर जाती है
शाश्वत की पदचाप ह्रदय में उभर आती है
और वो क्षितिज से मुझे देख कर हाथ हिलाती है
ना जाने कैसे, रोम रोम में कविता खिलखिलाती है
कविता
ना जाने कहाँ से आती है
कहाँ छुप जाती है
ये अबूझ पहेली भी लुभाती है
धन्य हूँ इस बात से
कि अपना समझती है मुझे
तभी तो जब जी चाहे
चली आती है
लो
अर्थ ढूँढने की आदत छुड़ा कर जब
कविता फिर मुझे इधर उधर भगाती है
ना जाने कैसे, सशक्त श्वेत पंखो की उड़ान
मेरी धडकनों को मिल जाती है
कौन सुनाये इस अनुभव का आँखों देखा हाल
जब कविता विराट-मिलन का उत्सव मनाती है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० नवम्बर 2011
6 comments:
शब्द न जाने कहाँ से उमड़ पड़ते हैं।
कविता
ना जाने कहाँ से आती है
कहाँ छुप जाती है
ये अबूझ पहेली भी लुभाती है
धन्य हूँ इस बात से
कि अपना समझती है मुझे
तभी तो जब जी चाहे
चली आती है
ओह! आप कविता के और कविता आपकी.
धन्य है,धन्य है.
यह अपनापन अच्छा लगता है जी.
पर लगता है 'हम आपके हैं कौन'
मुझसे अवश्य ही कोई गल्ती हुई है.
इसीलिए तो आपने मेरे ब्लॉग से मुख मोड़ा है.
याद आते हैं वे दिन जब वहाँ भी आपकी मधुर कविता का रसपान किया था.
अब आपकी कविता कब विराजेगी,उस अपनेपन
का इंतजार है.
कविता की परिभाषा सुन्दरतम है बधाई
साधु-साधु
कौन सुनाये इस अनुभव का आँखों देखा हाल
जब कविता विराट-मिलन का उत्सव मनाती है
कविता मन में आना और फिर उसका रूप पन्नो में देना ...किसी उत्सव से कम नहीं होता उसका आह्लाद ...
सुंदर अभिव्यक्ति ..
जय श्री कृष्ण
अहंकार की परिधि के पार
जब होता समर्पण श्रृंगार
बह आती मधुरातिमधुर
परमानन्द की रसधार
ऐसी पावन रसधार में नहायें
बहुत बहुत शुभकामनाएं
आपकी रसमयी पावन कविता ने मेरे ब्लॉग को
पवित्रता और सरसता प्रदान की है.अपना होने का अहसास करा दिया है मुझे.मेरे शोक का हरण कर लिया है आपने,प्रिय अशोक भाई.
बहुत बहुत हृदय से आभारी हूँ.
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