(फोटो- डॉ विवेक भारद्वाज) |
अब थकान अपने हिस्से की साथ लिए
सपनो के कुछ किस्सों की सौगात लिए
आज नदी को दिखलाने ले आया हूँ
निशां चोट के, साँसों में शह-मात लिए
२
कहाँ चलूँ अब, ये उलझे हालात लिए
कब तक उफ़ न करूँ, ऐसे आघात लिए
आज उजाले के घर की देहरी पर हूँ
भीतर कैसे जाऊं, ग़म की रात लिए
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२६ सितम्बर २०११
2 comments:
वाह भीतर कैसे जाऊँ गम की रात लिये…………गज़ब के भावो का संग्रह्।
भीतर कैसे जाऊं, ग़म की रात लिए
रहस्यमय..
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