और फिर
दिन ऐसे आते हैं
जैसे लहर पर बिठा कर
मौजी खिलाता है कोई
एक के बाद दूसरा
दूसरे के बाद तीसरा
दिन पर दिन
मंगल स्फूर्ति का स्वाद चखते
धीरे धीरे
डूबते हुए
अपने आप में
देखते हैं
वह सब
जो होता है
वह सब
जिससे हमारा होना होता दिखाई देता है
फिर
एक क्षण
बिना किसी टूटन के
विलग हो जाता है
हमारा संपर्क
इस सारे मेले से
और
अपने आप में परिपूर्ण
गतिविधियों की श्रृंखला को
होते हुए देखते हैं हम
हमें निमित्त बना कर
खेलता है जो
उसकी झलक पाकर
और अधिक अच्छी लगने लगती है
ये लहरों की मौजी
और
लहर से उतर कर भी
बना रहता है
अंतस मे
उस परम खिलाडी का
मांगलिक चिन्ह
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सोमवार, १८ सितम्बर २०११
2 comments:
पवित्र अभिव्यक्ति
और अधिक अच्छी लगने लगती है
ये लहरों की मौजी
और
लहर से उतर कर भी
बना रहता है
अंतस मे
उस परम खिलाडी का
मांगलिक चिन्ह
मौजां ही मौजां
एक बार उसकी लहरों की मौज
ले ली तो लहर उतरने के बाद
पावन अहसास बना ही रहता है.
लोहा पारस को छू गया,तो सोना ही है न.
सोना! पारस के छूने का चिन्ह.
लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल
लाली देखन मैं गई,मैं भी हो गई लाल.
Post a Comment