Friday, September 16, 2011

एक मधुर मौन

(फोटो- डॉ विवेक भारद्वाज)

यह जो प्रसन्नता का 
नया नया आलोक है
इस उजियारे में
मेरी धडकनें 
बुनती हैं 
प्रीत के नए छंद   

मैं मगन होकर
साथ गगन के
फैला देता 
अपनी बाहें
और
आलिंगनबद्ध कर लेता
अपने ही विस्तृत निराकार आकार को

गुंजरित होता
अनंत का संगीत
कण कण में जो

अनुनादित है
ह्रदय 
उसी के नाद से
जब
इस क्षण

यूँ लगता 
स्वतः प्रसार होता है
एक मधुर मौन का

केंद्र 
इस अनिर्वचनीय मौन का होकर
देखता हूँ
तो खिलता है बोध
कण-कण में केंद्र है
इसी 'स्व-प्रकाशित' करूणा का  
          


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१६ सितम्बर २०११  

2 comments:

Rakesh Kumar said...

आपके मधुर मौन की तान अनुपम और निराली है.
मौन होकर मग्न हो गया हूँ बस.

प्रवीण पाण्डेय said...

अनिर्वचनीय मौन

बस खोज यही है।

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