Thursday, September 8, 2011

अनंत की गाथा







दिन दिन
खुलती जाती हैं गांठें
और अधिक मात्रा में
सुलभ होता है मुक्त गगन

अनंत की गाथा
सुनाता समय

 होता असर
इस अक्षय कथा का
जब
कर पाता श्रवण
तन्मय होकर

   इस प्रभाव में  
उत्सव मनाता हूँ
 उस सबका     
   जो पाता हूँ
 और उसका भी
  जो छोड़ जाता
या जिससे छूट जाता हूँ 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
 

5 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

छूट गया वो छोड़ बढ़ो तुम।

Rakesh Kumar said...

इस प्रभाव में
उत्सव मनाता हूँ
उस सबका
जो पाता हूँ
और उसका भी
जो छोड़ जाता
या जिससे छूट जाता हूँ

इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयानघ
एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत.

अक्षय कथा का तन्मय होकर श्रवण मनन
बुद्धिमानों को कृतकृत्य कर देता है.

Anupama Tripathi said...

शनिवार (१०-९-११) को आपकी कोई पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर है ...कृपया आमंत्रण स्वीकार करें ....aur apne vichar den..

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत बढ़िया सर।

सादर

Minakshi Pant said...

अपनी बात कहने में सफल ऐसे ही बढते चलो :)
सुन्दर रचना |

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...