धीरे धीरे लौट आया फिर
अपने आप में मैं
मिट गया खोखलापन
लुप्त हुआ अपरिचय का भाव
छूकर
मेरे सब इन्द्रियों को भीतर से
किसी ने
जगा दी आश्वस्त करती
नूतन जगमगाहट
धीरे धीरे
फिर मुखरित हुआ
जीने का आनंद
झंकृत हुए
उमंगों के स्वर
लहराई चाह
कुछ ऐसा करने की
कि अभिव्यक्त हो
मेरा सबसे जुड़ाव
लो पेड़, बादल, पंछियों की बोली के साथ
फिर करने लगी
मेरी धडकनें मौन संवाद
फिर से महसूस हो रहा है
मेरी शुभ कामनाओं में
तुम्हारी स्फूर्ति है
मेरे प्राणों को
पूर्णता की माधुरी से
भर रहा है
प्राणदाता का अनुग्रह स्पर्श
अशोक व्यास
१५ अगस्त २०११
न्यूयार्क, अमेरिका
2 comments:
उस स्पर्श की प्रतीक्षा।
भावपूर्ण रचना……आभार।
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