१
आज
देख रहा हूँ
कितनी दुरूह है
तुम्हारी कविता
ये मेरा जीवन
इतनी सारी परतें
इतने सारे आयाम
इतना विस्तार देकर भी
नहीं बताया तुमने
कैसे करूँ
इस विस्तृत चेतना का आलिंगन
२
आज लग रहा हूँ
जो कुछ छुपाया है तुमने
वो शायद इसलिए की
हर दिन करता रहूँ
मैं अपना आविष्कार
और इस तरह
हर दिन मिलता रहे
नया नया उपहार
३
तुम से ही है
प्यार, सार
रसधार,
अपने
जन्मदिन पर
तुम्हें प्रणाम, तुम्हारा आभार
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ अगस्त २०११
3 comments:
तुम से ही है
प्यार, सार
रसधार,
अपने
जन्मदिन पर
तुम्हें प्रणाम, तुम्हारा आभार
अरे वाह! अशोक भाई.
आपका जन्म दिन
और आज ही रक्षाबन्धन
का शुभ दिन.
प्रभु ने क्या सुन्दर तोहफा दिया है.
लगता है प्रभु को राखी बाँध कर ही आयें है आप.
आपको शत शत बधाई और शुभकामनाएँ.
रक्षाबन्धन और स्वतंत्रता दिवस की भी हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरा ब्लॉग भी आपके दर्शन को व्याकुल है.
जन्मदिन की बधाई, चेतना बस खुलती जाये।
हर दिन करता रहूँ
मैं अपना आविष्कार
सुंदर विचार....
जन्मदिन की शुभकामनायें.
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